स्नेह की पाती. स्नेहियों के नाम
स्नेही पाठकों,
स्नेहाभिनंदन
एक विशाल लोकतंत्र के चुनाव अपने परिणामों के साथ भारतीय जनमानस के सम्मुख जब उजागर हुए तो लोकतांत्रिक देश के अलोकतांत्रिक असामयिक जन निर्णय ने लोकतंत्र की आत्मा को ही झकझोर दिया है। आज यह अनुभव हमें यह आभास कराने की कवायद करते दिखाई दे रही हैं कि संभलो कुछ अहित न हो जाये। एक समय था कि लोकतंत्र की सुपरिचित परिभाषा बड़ी चलन में रही जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन परन्तु अब इस परिभाषा ने अपना स्वरूप बदल दिया है। जनता वह है जो चैतन्यता से हर कदम फूंक-फूंक कर रखते हुए अपने बहुमूल्य मतों को सहेज कर रखती है और समय आने पर उसका उपयोग कर देश को एक नई दिशा में आगे बढ़ाने के लिए अपना सर्वस्व त्यागती है, हर मुसीबत, हर जल्म. हर फैसला स्वीकारती है। टैक्स देती है और मौन व्रत रखती है। वही आज के चुनाव परिणाम और शासन व्यवस्था को देखकर तो ऐसा लगता है कि एक गुट चुनाव लड़ता है, एक गुट प्रचार करता है और एक गुट वोट देता है । एक वर्ग बन गया है जो अपने बहुमूल्य मत मूल्यहीन अपात्रों को देकर लोकतंत्र की गरिमा को कमतर आंकता है परिणाम वही ढाक के तीन पात स्वच्छता सुशासन, चरित्रवान शासक के पुरुषार्थ को समझ सके ऐसी मानसिकता के धनी जनमानस आखिर भारत कहां से लाएँ? पल प्रतिपल बदलते राजनीतिक दाँव-पेंच किसी अघोषित अस्थिरता का ही संकेत दे रहे हैं। हमें एक जुट होकर चिंतन करने की आवश्यकता है। भारत एक सचरित्र, भ्रष्टाचार, मुक्त देश बनें यही राष्ट्रहित में सर्वोत्तम विकल्प होगा और सरदार पटेल भगतसिंह, चन्द्रशेखर के प्रति सच्ची वफादारी भी.....। शेष शुभ! -शुभाकांक्षी