सम्पादकीय - JAN- MARCH 2019
क्षण प्रतिक्षण बदलते वैश्विक परिवेश में यह अनभति कहीं अंतस में गहरी पीडा का संचार कर रही है। अपने बड़ों से सुना था कि कलयुग आएगा तो यह होगा वह होगा, जाने क्या-क्या? सुनकर अज्ञात भय से मन कांप उठता। पर्वजों ने अपनी टाटशि से सब कळ समझकर अपने पालितों को ससंस्कार देकर यह हिदायत दी थी कि विपरीत. प्रतिकल परिस्थितियों में संस्कार ही तम्हारे काम आयेंगेउनकी वह सीख अब अक्षरशः सत्य सिद्ध हो रही है। संपर्ण विश्व में प्रकति सहित मानवीय गतिविधियों में हो रहे परिवर्तन का अध्ययन हमें यह दर्शा रहा है कि 21 वीं सदी का भारत घोर लयुग की असहनीय पीड़ा से गुजर रहा हैजहां शेष कुछ भी नहीं हैभारतीय जन समाज शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, मूल्यों को खोकर महादरिद्र बनकर अमानवीय, असभ्य, मूल्यहीन राजनीतिक कचक्रों का शिकार हो गया है।
भारत की परिस्थितियां दिन प्रतिदिन छल कपट झठ, बेईमानी, लट खसोट, जैसे भ्रष्टाचारी दैत्य के भयावह वातावरण की शरण में हैपरिवार मल्यों व संस्कारों से कोसों दर अतिभौतिकवाद के चंगल में फंस कर टूट कर बिखर रहे हैं; अमानवीयता के दंश से समाज कराह रहा है। मानवता सिसक रही हैआज राजनीति के गिरते स्तर ने भारतीय संस्कृति की गरिमा को एक ओर जहां तार-तार किया है वहीं दूसरी ओर विश्व युद्ध के पद पर अपनी संस्कृति, मूल्यों, ज्ञान व आध्यात्मिक शक्तियों के बलबूते प्रतिष्ठित होने का अवसर भी खो रहा है। यह सब इस देश के सज्जनों के मौन और शिक्षितों के अज्ञानता और युवाओं के काल्पनिक जगत् के आकर्षणों में खोये रहने का परिणाम है। अनायास अकर्मण्यता, आलस्य और बढ़ती नकारात्मकता ने सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। भारतीय जन समाज व वैश्विक स्तर पर मानवीय सभ्यता को सबसे अधिक हानि दूषित विचारों से है। अर्थात् “Thought polution” सबसे अधिक सक्रिय विनाश की जिम्मेदार है। यह घटिया नकारात्मक सोच ही भारत को कमजोर कर रही है।
मेरी कलम किसी भी मूल्य पर अपनी निष्ठा, आस्था, विश्वास को खो नहीं सकती इसलिए अपनी कलम की ताकत से भारतीय जनमानस की मानसिक गुलामी के जंजीरों को सकारात्मक, सार्थक, सारवान शब्दों की ऊष्मा से छिन्न-भिन्न कर एक नवोदित भारतीय समाज की तस्वीर देखना चाहती है। देश की सही तस्वीर तो जनशक्ति के हाथों में ही है, यदि जनमानस केवल देश को अपना समझें उसे अपनत्व दे उस पर गर्व अनुभव करे तो, कोई कारण नहीं कि स्वच्छता, स्वास्थ्य, आर्थिक, सामाजिक, मानवीय मूल्यों व संस्कारों में वह किसी से कम होi
भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर थे, उस अवस्था में युधिष्ठिर को उपदेश दिया था, वे जानते थे कि युधिष्ठिर ही एक योग्य राजा हो सकता है, इसलिए उसे पितामह ने गुरूमंत्र दिया राजा वही होना चाहिए और वही हो, जो अपनी प्रजा को अपनी संतान की तरह प्रेम करे. पुत्रवत स्नेह करने वाला हो। ऐसी सन्दर भावना से जब राजा अभिसिक्त होता है तभी प्रजा में सुख, शांति, समृद्धि और प्रशासन का स्वरूप रामराज्य बनता है। विडम्बना यह है आज लोकतंत्र में कुशासन में आकण्ठ डूबा प्रशासन परिवार को ही प्रजा मानकर उनके विकास के लिए देश को ही दाँव पर लगा रहे हैं।
संपादकीय संपादकीय कलम से शब्दों की अभिव्यक्ति करते हुए एक दृश्य देख रही हूँ लगता है विश्वाकाश में आसुरी शक्तियां एक तरफ और दैवीय शक्तियां एक तरफ अनायास जुट रही हैं। एक सत्यका खेमा एक असत्य का खेमा, ऐसा लगता है महाभारत का युद्ध होने को है और सेना युद्ध के लिए सज रही है। यही, वह समय है, जब श्रीकृष्ण के उपदेश कुरुक्षेत्र में प्रतिध्वनित हुए, उपदेश अर्जुन को मिला और उसका भय, भ्रम, निराशा, कुण्ठा, संदेह सब कुछ मिट गया और उमंग, उत्साह से भरे मन से अपने कर्तव्य की ओर प्रवृत्त हुआ। इसी प्रकार सत्यवादी हरिश्चन्द्र, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, भगतसिंह, अब्दुल कलाम जैसे महापुरुषों ने सत्य की छत्रछाया में रहकर अर्जुन की भूमिका में भारत को स्वतंत्र और शक्तिशाली बना कर नई पीढ़ी को स्वतंत्रता की विरासत दी है।
___ मेरे देश की माटी है ही इतनी पावन, शुद्ध और शक्तिशाली जहां सत्य के रूप में सदा ईश्वर प्रतिष्ठित है सत्यमेव जयते सत्य की ही जय होती है। इसलिए प्रतिकूल, विपरीत, संकटों के चाहे जितनी घनघोर घटाएं क्यों ना छा जाए ??? .... प्रजा सावधान हो, प्रभु की शरण रहें .... जीत तो सत्य की है, चाहे कुछ भी हो जाये। मेरा देश अर्जुन है ज्ञान भी उसे ही मिलेगा और विजयश्री भीi
संपादकीय दायित्व का निर्वहन चुनौती पूर्ण है, सत्य के धरातल पर टिक कर आगे बढ़ने की चाहत ने कहा वास्तविक विषयों को चुनकर कलम की पवित्रता को बनाए रखते हुए ज्वलंत, रचनात्मक किसी मुद्दे को आकार दूं। अंतस में झांककर देखा तो कुछ ऐसे व्यक्तित्व आंखों के सामने आ खड़े हुए। सहसा स्मृति की ओट में रहस्य उजागर हो उठे। एक-एक कर नाम, काम, समर्पण आदि-आदि का परिचय स्पष्ट होने लगा। साथ ही यह सत्य भी ज्ञात हुआ कि इन महान विभूतियों के चरित्र निर्माण में मुख्य भूमिका श्रीमदभगवद् गीता की थीजिन्होंने गीता को जिया वास्तव में गीता हमें जीना और मरना सिखाती है। जीवन के सौन्दर्य से राष्ट्र निर्माण के सच्चे नायक के रूप में उन राष्ट्र प्रेमियों का उल्लेख राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की दृष्टि से अंतसमणि का सकारात्मक पहल अपने देशवासियों के लिये संदेश हैगीता स्वयं से हमारा परिचय कराती हैकर्म करना सिखाती है। गीता हमें मुस्कुराना और दूसरों के होठों पर मुस्कुराहट लाना सिखाती है। नि:स्वार्थ प्रेम, परस्पर समानता का भाव निर्माण कर अपने कर्तव्य और अधिकारों का उपयोग करना सिखाती है।