अब्दुल कलाम
वीर प्रसिवनी धरती माँ की गोद में ऐसे सपूत पले जिन्होंने माँ की ममता, वात्सल्य और अभिमान को गौरवान्वित किया। धरती माँ ऐसे अपने सपूतों से हर्षित होती है और अपनी परवरिश को सराहती है, गहरा अंधेरा चाहे जितना हो, एक दीप ही पर्याप्त है उसे उजाले में भरने के लिए। माँ के धैर्य, सहनशीलता, उदारता, पवित्रता के गुणों की विरासत उन वीर सपूतों को ही प्राप्त हुआ है जिन्होंने अपना समस्त जीवन ही धरती माँ की सेवा में अर्पित किया है। भारत देश की अगर बात करें तो ऐसे कुछ नाम उभरते हैं जिन्होंने अपने जीवन का एक-एक पल उपयोग कर वह सब कुछ सीखा जो संपूर्ण व्यक्तित्व निर्माण करने के लिए अति आवश्यक है।
उन्होंने जहां बाहरी दुनियां में कामयाब होने के लिए लिखी हुई हर पुस्तक को पढ़कर सीखा, शिक्षा के ऊंचे शिखर तक पहुंचे वहीं बाहरी शिक्षा के साथ अपने भीतर की ओर मुड़कर अपने आप से भी बहुत कुछ सीखा ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी, संपूर्ण मानव के प्रतिमान स्वरूप एक ऐसे प्रतिभाशाली भारतरत्न उपाधि से सम्मानित सपूत की जीवन यात्रा की विराट व्याख्या हम करेंगे जिन्हें देश आज मिसाइल मैन के नाम से जानता है, जी हाँ, हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के ही संदर्भ में राष्ट्र विकास की प्रासंगिकता परख रहे हैं।
15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोड़ी गाँव (रामेश्वरम तमिलनाडु) में एक मध्यवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ। इनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज्यादा पढ़े लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम संयुक्त पविार में रहते थे। परिवार में पाँच भाई, पाँच बहन घर में और तीन परिवार रहा करते थे। बालावस्था में अब्दुल कलाम को एक संयुक्त परिवार मिला जिसमें उन्हें सामाजिक सहयोग, सद्भावना व उनके विकास के लिए किए जाने वाले नवोन्मुखी विचार मिले, प्रेरणा मिली। गीता के पवित्र ग्रंथ के अध्ययन ने उन्हें कर्म के रहस्य का परिचय मिला और जीवन की बारीकियों को समझने का अवसर मिलावे जान चुके थे कि जो कुछ करना है मुझे ही स्वयं के सामर्थ्य से करना है क्योंकि जो कुछ ब्राह्माण्ड में है वही सब कुछ मेरे भीतर है जिसे अपने पुरुषार्थ, लगन और नियमित अभ्यास से मुझे प्राप्त करना होगा। बाहर से भले ही बालपन का शरीर धारण किया हो परन्तु भीतर से मिले ज्ञान ने बालक अब्दुल को शनैः शनैः परिपक्व बनाया। अब्दुल कलाम के जीवन पर उनके पिता का प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए। प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही उनके शिक्षक, इयादुरराई सोलेमन ने उनसे कहा था कि जीवन में सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए 'तीव्र इच्छा आस्था', अपेक्षा, इन तीन शक्तियों को भलीभांति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना। अब्दुल कलाम ने अपने परिवार की खुशहाली बनाए रखने के लिए शिक्षा के साथ-साथ अखबार बांटने का काम भी किया।
अब्दुल कलाम ने शिक्षा के ऊँचे शिखर तक का सफर आरंभ किया सन् 1950 में मद्रास, इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आए जहां उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक बनने के बाद, स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एस.एल.वी. 3 का निर्माण किया। जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह का सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपण हुआ। उनका वैज्ञानिक जीवन यहां से आरंभ हुआ। इस संबंध में अब्दुल कलाम कहते हैं कि यह मेरा पहला चरण था जिसमें मैंने तीन महान शिक्षकों विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीश धवन और ब्रह्म प्रकाश से नेतृत्व सीखा। विज्ञान की बारीकियों को गहराई से जानने के बाद वे रूके नहीं बल्कि आगे बढ़ते हुए उन्होंने भारतीय सैन्य शक्ति को मजबूत बनाने के लिए एक के बाद एक धडाधड स्वदेशी लक्ष्यभेदी नियंत्रित प्रेक्षपास्त्रों को डिजाइन किया अग्नि और पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीकों में बनाया।
जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षामंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव रहे। पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण किया। विज्ञान की अनंत संभावनाओं से भारत सरकार को अवगत कराने वाले अब्दुल कलाम की अपनी धारणा इन अंतरिक्ष मिसाइलों व परमाणु शस्त्र आदि पर यही थी कि वे मानते थे 2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है। यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है। शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण प्रक्षेपास्त्रों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति सम्पन्न हो।
मिसाइल मैन, एक वैज्ञानिक के रूप में अब्दुल कलाम तो सुविख्यात हैं ही परन्तु पूरे विश्व ने उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की, जीवन शैली की, प्रतिभा की मुक्त कण्ठ से सराहना की है। जीवन अब्दुल कलाम के इस देश में जब तक चरित्र निर्माण नहीं होगा तब तक राष्ट्र भी चरित्रहीन ही रहेगाजाति-धर्म, ऊँचनीच, का नाटक बंद करना होगाकलाम जैसे वीर सपूतों व राष्ट्र निर्माण के सच्चे नायकों के चरित्र से भारत की जनता को सीख लेकर अपना जीवन बदलना होगा। हमारे पूर्वजों ने हमें सोने की चिड़िया दी थी और हमने सोने की चिड़िया दलाली के चंद टुकड़ों के लिए स्वयं निगल ली। अब कंगाल होकर उनके द्वारा भेजे गए के.एफ.सी., बरगर, पीजा के मायाजाल में फड़फड़ा रहे हैं और आने वाली पीढ़ी को कुसंस्कारित करने का कुचक्र चला रहे हैं। आज की इन परिस्थितियों में मूल्यों की ओर कदम-बढ़ाने का साहस कर रहे हैं परंतु भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा तो नहीं है।
__अब्दुल कलाम के जीवन की झलकियां जिनसे एक महान व्यक्तित्व आकार लिया उनकी चर्चा भी अपेक्षित हैउनका व्यक्तिगत जीवन अनुशासित थास्वभाव विनम्र कुरान व भगवद् गीता दोनों का अध्ययन करते थेवे तिरूक्कुरल अनुसरण करते थे। उनकी सादगी सामान्य जन मानस के प्रति भावनाएं अनुकरणीय हैं। वे कहते यह बहुत गौरवान्वित पूर्वक तो नहीं सकता कि मेरा जीवन किसी के आदर्श बन सकता है लेकिन जिस मेरी नियति ने आकार ग्रहण किया उससे किसी गरीब बच्चे को अवश्य मिलेगी जो किसी छोटी जगह पर सुविधाहीन सामाजिक दशाओं में रह रहा हो। शायद यह __अब्दुल कलाम के जीवन की कुछ झलकियां जिनसे एक महान व्यक्तित्व ने आकार लिया उनकी चर्चा भी अपेक्षित हैउनका व्यक्तिगत जीवन पूर्ण अनुशासित थास्वभाव विनम्र था। वे कुरान व भगवद् गीता दोनों का अध्ययन करते थेवे तिरूक्कुरल का भी अनुसरण करते थे। उनकी सादगी और सामान्य जन मानस के प्रति उनकी भावनाएं अनुकरणीय हैं। वे कहते हैं मैं यह बहुत गौरवान्वित पूर्वक तो नहीं कह सकता कि मेरा जीवन किसी के लिए आदर्श बन सकता है लेकिन जिस तरह मेरी नियति ने आकार ग्रहण किया है उससे किसी गरीब बच्चे को सांत्वना अवश्य मिलेगी जो किसी छोटी सी जगह पर सुविधाहीन सामाजिक दशाओं में रह रहा हो। शायद यह ऐसी बच्चों को उनके पिछड़ेपन की भावनाओं से विमुक्त होने में अवश्य सहायता करेंi
18 जुलाई 2002 को कलाम नब्बे प्रतिशत बहुमत के साथ देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के लिए चयनित हुए। उन्होंने अपना कार्यकाल बड़ी ही कुशलता से पूरा किया। इस दौरान पूरे देश के युवाओं व बच्चों से मिलते रहे उन्हें प्रेरित करते रहे। एक शक्तिशाली सर्वसुविधाओं से युक्त राष्ट्र के रूप में 'भारत' को देखने की उनकी इच्छा थी। 27 जुलाई 2015 की भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग में 'रहने योग्य ग्रह' विषय पर अपना व्याख्यान दे रहे थे तभी नियति के क्रूर पंजों ने उन्हें हमसे छीन लिया उनके निधन पर देश ही नहीं समूचा विश्व ही शोक में डूब गया। एक ऐसा सच्चा अनमोल हीरा देश ने खोया उसके ओझल होते ही मानों अराजकता का गहरा अंधकार चारों ओर फैल गया है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और इस देश को उनके द्वारा दिखाए गए पूर्ण सुरक्षित विकास के मार्ग पर चलने का सामर्थ्य दे, सद्बुद्धि दे ताकि देशवासियों की सुरक्षा हो सकेI
देशवासियों की अरबों, खरबों अरबों, खरबों में कोई ऐसा व्यक्तित्व जन्म लेता है धरती का उद्धार करने । भारत माता सौभाग्य शाली है जो एक ऐसा प्रसून उनकी गोद में पला जिसकी रंगत, चाहत, खुशबू ने पूरे देश को महका दिया, आज पूरा विश्व उनके सच्चे पुरुषार्थी व्यक्तित्व से सीख रहा है और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहा है। सही मायने में डॉ. अब्दुल कलाम भारत माँ के सच्चे सपत सच्चे रत्न और राष्ट्रनिर्माण के सच्चे नायक है देशवासियों के दिलों में सदियों राज करने वाला अद्वितीय व्यक्तित्व डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम नमन वंदन और सलाम ....I