व्यंग्य दीवाली व्यय साम्प्रदायिकता

व्यंग्य दीवाली व्यय साम्प्रदायिकता


सुबह देर से आँख खुली तो घर के दरवाजे पर शोरगल सनाई दियाबाहर निकलकर देखा तो लच्छो रानी अपनी महिला टीम के साथ खडी हई थी। लच्छो रानी का परिचय तो बहुत विशाल है. किन्त अभी यहां उनके संक्षिप्त परिचय से ही काम चला लेते हैं। लच्छो रानी हमारे क्षेत्र की चर्चित महिला हैं। उनका अपना एक एनजीओ है जो कि उनकी भरी-परी सेहत का राज है। लच्छो रानी शैक्षिक रूप से बी.एस.बी.एफ. हैं मतलब कि बी.ए. बट फेल। फिर भी वो अपने मस्तिष्क में जिन्दगी का इतना तजर्बा समेटे हुए हैं कि अच्छे-अच्छों के कान काटने में माहिर हैंजब शरूआत में उन्होंने एनजीओ के माध्यम से अपना कैरियर शुरू किया था तो जनता और पुलिस के बीच दलाली करके या फिर किसी नेता या व्यवसायी के तलवे चाटकर स्वयंसेवा या कहें कि खद की सेवा करने के लिए अपने एनजीओ के नाम पर मेवा बटोरती रहती थीं। एक दिन उनकी लॉटरी खुल गईं जब एक विदेशी मेमसाहब उनके एनजीओ के कार्यक्रम में अतिथि बनकर आयीं। विदेशी मेमसाहब और लच्छो रानी में जाने क्या खुसर-फुसर हुई कि उनके एनजीओ पर विदेशी कृपा बरसने लगी। अब लच्छो रानी के दिनों-दिन मुटल्ले होते हुए शरीर को देखकर बखूबी पता चलता है कि उनके और उनके एनजीओ के अच्छे दिन आ गए हैं। अब लच्छो रानी छोटे- मोटे मामलों में हस्तक्षेप करना भी अपना अपमान समझती हैं और छोटे-मोटे लोगों से मिलना अपनी तौहीन। 


आज जब लच्छो रानी को अपने दरवाजे पर खड़े देखा तो मन शंकित हुआ कि उन्हें मुझ जैसे छोटे-मोटे इंसान की चौखट पर आने की उन्हें क्या सूझ पड़ी? मेरे दरवाजे की देहरी पर प्रकट होते ही लच्छो रानी ने अपने होठों पर लगी महंगी लिपिस्टिक खराब होने के डर से एक निश्चित सीमा में ही रहकर मुस्कुराते हुए नमस्ते कहकर अभिवादन किया। मैंने भी शिष्टतावश नमस्ते कहते हुए उनसे पूछा, 'लच्छो जी आज रास्ता कैसे भूल गयीं?'


हा हा हा बबुआ तुम्हऊँ खूब मजाक कर लेत हो।अब तुम तो जानतई हो कि हम समाज सेवा करत हैं और समाज सेवक को काम होत है समाज के हित की बात जन-जन तक पहुंचायबो।' लच्छो रानी अपनी पान से रंगी बत्तीशी दिखाते हए बोलीं।


मैंने मुस्कुराते हुए कहा, 'हाँ वो तो मुझे भली-भांति पता है कि आप और आपका एनजीओ समाज की कितनी सेवा करता है।'


मेरी बात सुन एक पल के लिए तो लच्छो रानी तिलमिला गयीं, लेकिन फिर यो सँभलते हुए अपनी टीम से बोलीं, 'देखा बहन लोगो हमाई समाज सेवा के जे बबुआऊ फैन हैं। अब बबुआ का बताएँ जा समाज सेवा तो हमाए खन में कूट-कूट के समाय गयी है। अब जबहूँ कहीं पे समाज को अहित देखत है तो हमाओ मन बेचैन हुय जात है।'


लच्छो रानी की बात सुनकर एक पल तो किया कि ठहाका लगाकर जोर-जोर से हँसूं पर मौके नजाकत देखकर अपनी हँसी को कुर्बान करना ही ठीक लगा। इस तरह अपनी हँसी को कुर्बान कर उनसे बोला, आपकी और आपकी टीम की सदस्याओं की सेहत देखकर स्पष्ट दिखाई देता है कि आप और आपका एनजीओ समाज के हित के लिए कितना अधिक चिंतित रहता है। बहरहाल छोड़िये ये सब। फिलहाल आप तो ये बताइये कि आज मुझ जैसे तुच्छ प्राणी को आपके दर्शन का सौभाग्य आखिर कैसे मिला?'


लच्छो रानी ने अपने माथे पर आयी डिजाइनर लट को झटके से एक ओर किया और अपने चेहरे पर जितने संभव हो सकते थे उतने गंभीर भाव लाते हुए कहा, 'बबुआ तुम तो जानतई हो कि दीवाली में कछु दिन बाकी बचे हैं।'


___'हाँ जानता हूँ। वैसे भी साल में एक ही तो अवसर मिलता है धूम- धड़ाका करने का। ये तो आप भी लोगों द्वारा छोड़े गए पटाखे देख और सुन रही होंगी। मैंने कहाI


___ लच्छो रानी उत्साहित हो बोलीं, जई तो हम बतान चाहत हैं कि दीवाली पर लोग-बाग बम-पटाखा चलात हैं तो कित्ता धुआँ धक्कड़ फैलत है और जाने किते लोग जा त्यौहार पे साँस की बीमारी से मारे जात हैं। __पर इसका फायदा भी तो होता है।


__पर इसका फायदा भी तो होता है। बम-पटाखों के धुएं से हमारे आसपास के अधिकांश मक्खी-मच्छरों का सफाया हो जाता है और हमें कुछ दिनों के लिए डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया इत्यादि मच्छर जनित रोगों से राहत मिलती है। मैंने भी अपना तर्क रखा I


अब लच्छो रानी खिसियाते हुए बोली, 'बबुआ तुम हमायी बात समझ नहीं रहे। देखो पटाखा छोड़बे से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है।' 'लच्छो जी एक बात तो बताइये।' मैं बोला। लच्छो रानी जोश में बोली, 'अरे एक कहो दुय पूछो।' नहीं एक बात ही पूछनी है - मैंने कहा। लच्छो रानी ने उसी जोशीले अंदाज में कहा, 'हाँ बबुआ तुम्हें जौन सी बात पूछनी है बा पूछ डालो।'


आप पर सिर्फ होली, दीवाली या फिर हिन्दुओं के अन्य त्यौहारों पर ही समाज सेवा का भूत क्यों चढ़ता है? होली पर आप कहती हैं रंग मत लगाओ, दीवाली पर आपके अनुसार पटाखे नहीं फोड़ने चाहिए और दुर्गा पूजा व गणेश चतुर्थी पर आप मूर्ति विसर्जन के विरोध में झंडा उठाये रहती हैं। आप उस समय क्यों नहीं जागती, जब त्यौहार के नाम लाखों-करोड़ों जीवों की हत्याएं की जाती हैं या फिर तब क्यों नहीं विरोध करतीं जब नए साल के जश्न पर लोग दारू में नहा रहे होते हैं। प्रदूषण और बीमारियां तो तब भी फैलती हैं। मैंने विरोध दर्शाते हुए कहा।


लच्छो रानी एक पल को झेंपी फिर बोलीं, 'देखो बबुआ वो उन लोगन को धार्मिक मसला है और हम लोगन को काऊ के धर्म के बीच में नहीं पड़बो चाहिए। हम तो अपने धर्म की गलतियां सुधारबे के जिम्मेवार हैं।'


मैंने लच्छो रानी से मुस्कुराते हुए पूछा, 'जिम्मेवार हैं या फिर अपनी विदेशी मेमसाहबों की वफादार हैं, जो आपकी वफादारी के लिए आपको लाखों में खिलवाती हैं।' यह सुनकर लच्छो रानी अपनी यह सुनकर लच्छो रानी अपनी टीम के साथ मझे नमस्ते कर वहाँ से चल पड़ी तो मैंने उनसे पूछा, 'लच्छो जी क्या बात हुई जो यूँ अचानक बात बीच में ही छोड़कर चल दी?'


लच्छो रानी ने बिना पीछे मुड़े चलते-चलते ही जवाब दिया, 'बबुआ हम सोचे थे कि तुम लेखक हो तो सेकुलर हुइयो पर तुम तो सांप्रदायिक निकले और सांप्रदायिक लोगन को हम दूरई से सलाम करत हैं।' मैंने भी इतनी तेज आवाज में ही लच्छो रानी को बात का जवाब दिया जिससे कि उनको आराम से सुनाई दे जाए, 'लच्छो जी हम भी सेक्युलर ही है न कि आप और आप जैसे महानुभावों की तरह सो कॉल्ड सेक्युलर।'


 


 


 


 


 


 


।। सुमित प्रताप सिंह