सफलता की कुंजी -

सफलता की कुंजी -


 


रिंकी और पिंकी जिस मुहल्ले में रहती थीं. वह अधिक साफ-सथरा नहीं था, किन्त उनका अपना घर बहत साफ, सुन्दर और सजा हुआ था, यहां तक कि घर के बाहर भी किसी तरह की गंदगी नजर नहीं आती थी। महल्ले के सभी लोग जानते थे कि रिंकी और पिंकी की माँ बहत ही परिश्रमी और सलीके वाली है। वह सुबह जल्दी उठ कर घर के काम-काज में लग जाती थी और चाहती थी कि उनकी बेटियां भी उसकी तरह परिश्रमी और सुघड़ बने, इसलिए रात को सोने से पहले वह घड़ी में अलार्म भर देतीं और सुबह अलार्म बजते ही कहतीं, उठो बच्चों रात भर सोने के बाद भी क्या तुम्हें घड़ी का अलार्म सुनाई नहीं दे रहा। देखो सूरज कब का निकल आया है और हमें अभी ढेर सारे काम करने हैं। तब दोनों बहनें बड़े ही बेमन से आंखें मलते हुए उठतीं और धीरे-धीरे बिस्तर से बाहर आतीं, मुंह-हाथ धोती और अपने-अपने कामों में लग जातीं। उनके घर की साफ-सफाई को देख कर मुहल्ले वालों ने सोचा कि यदि सभी का घर उनके घर की तरह साफसुथरा हो जाए तो मक्खी -मच्छर और मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों से तो बचाव होगा ही, साथ ही ऐसी जगह रहने पर प्रसन्नता भी मिलेगी। तब सबने मिल कर यह फैसला किया कि हर महीने के शुरू में एक इनामी प्रतियोगिता रखी जाए जिसमें उस घर के प्रत्येक सदस्य को इनाम दिए जाने के साथसाथ प्रीतिभोज पर भी बुलाया जाए जिसका घर सबसे अधिक साफ-सुंदर और सजा हुआ दिखाई दे उसे पुरस्कृत किया जाए। सभी को यह बात बहुत पसंद आई और वे अपने-अपने घरों की देख-रेख में लग गए। 


रिंकी-पिंकी की माँ ने उनसे कहा, 'देखों बच्चों! हमारे घर की तो हमेशा से ही तारीफ होती रही है इसलिए प्रथम पुरस्कार भी हमें ही मिलना चाहिए, पर इसके लिए हमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। अब तुम दोनों बहनें अच्छे-अच्छे चित्र बना कर गलियारे और कमरों में लगाओ, गमलों को संदर पौधों से सजाओ और अपना घर-बाहर सब संवारों। माँ की बातें सुन कर दोनों ने हामी तो भर दी पर किसी प्रकार का उत्साह नहीं दिखाया i


अभी प्रतियोगिता होने में कछ ही दिन बाकी थे कि उनकी माँ को अचानक किसी काम से बाहर जाना पड़ गया, पर जाने से पहले वह उन्हें सब काम ढंग से करते रहने का आदेश भी देती गईं ताकि घर व्यवस्थित बना रहे। उनके जाते ही दोनों बहनें प्रसन्न हो गईं क्योंकि वे बहुत आलसी और कामचोर थीं और मजबूरी में ही घर का काम करती थी, पर अब उन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं था। चलो, अब तो चैन ही चैन है, इस सर्दी के मौसम में कौन जल्दी उठ कर घर के काम करे, हम तो रजाई ओढ़े देर तक सोएंगी, क्योंकि माँ के आते ही फिर वही काम की मुसीबत सिर पर सवार हो जाएगी। ऐसा सोचते हुए दोनों बहनों ने रात को घडी में अलार्म भी नहीं भरा, जिससे सबह नींद न खलने के कारण उनकी स्कल बस भी निकल गई। फिर भी वे खश थीं। अगले कछ दिन भी उन्होंने मस्ती में ही काटे। 


माँ ने लौट कर जब घर की हालत देखी तो अपना सिर पीट लिया, क्योंकि प्रतियोगिता होने में केवल दो ही दिन शेष थे और घर में चारों ओर सफाई के स्थान पर गदंगी फैली थी। तब माँ के तेवर देख दोनों बहनों ने बहाना बनाया कि उनके जाते ही वे बीमार पड़ गईं, इसलिए न तो स्कूल जा सकीं और न ही घर के काम कर सकीं। बेचारी माँ क्या करती, अब किसी से कुछ भी कहनासुनना बेकार था। बुझे मन से वह चुपचाप काम में लगी तो रहीं पर समय कम रह जाने के कारण घर की सफाई और सजावट में ढेरों कमियां रह गईं।


फलस्वरूप प्रथम पुरस्कार स्वास्तिका के घर को मिला, जिसमें उसके घर के सभी सदस्यों को अलग-अलग उपहार दिए गए। स्वास्तिका को तो झालर और लैस लगा सुन्दर रेशमी फ्रॉक मिला, जिसे वह शाम को प्रीतिभोज पर पहन कर आई।


रिंकी-पिंकी को प्रतियोगिता न जीत पाने का बहुत दुःख था, क्योंकि वह महसूस कर रही थीं कि उनके आलस्य और असहयोग के कारण ही उनकी माँ को इनाम नहीं मिल पाया जिसकी वह हकदार था।


तब मन-ही-मन उन्होंने मेहनत कर के अगला पुरस्कार हासिल करने का निश्चय कर लिया, क्योंकि अब वे जान चुकी थीं कि परिश्रम ही सफलता का कुजा है


अक्टूबर-दिसंबर 2018