क्रांतिवीर चन्द्रशेखर आजाद

क्रांतिवीर चन्द्रशेखर आजाद


 


एक बहुत ही छोटे आदिवासी गांव में जन्में बालक का नाम आगे चलकर सारा विश्व याद करेगा कोई नहीं जानता थायह बालक भी गुदड़ी का लाल निकला। पूत के पांव पालने' में ही नजर आने लगता है शिशु अवस्था से अपनी शूरवीरता का परिचय देता हुआ यह बालक एक ब्राह्मण परिवार में जन्मा माता जगरानी और पिता सीताराम तिवारी। परिवार उ.प्र. से अपना पैतृक स्थान छोड़कर म.प्र. के आदिवासी बहुल ग्राम भावरा में आ गए। इसी परिवार में जन्मा ऐसा अद्भुत व्यक्तित्व जिसकी थाह माता-पिता को भी नहीं थी। इस बालक का नाम रखा चन्द्रशेखर। बचपन में ही बालक के आचार व्यवहार से उनके गुणी, साहसी, निर्भीक होने का परिचय मिलता था। आदिवासियों के बीच रहते बालक चन्द्रशेखर ने गुलेल चलाना, धनुष चलाना, तलवार बाजी आदि भी सीख ली थी। पराधीनता का वह दौर था अंग्रेजों के अत्याचार और देशवासियों की दयनीय दशा बालक को आजादी के लिए प्रेरित करती।


14 वर्ष की आयु तक आते आते वे एक क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते थेएक बार 1921 में बापू के द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में भाग लिया। चन्द्रशेखर गिरफ्तार कर लिए गएजब उनसे जेल में पूछा गया कि तुम्हारा नाम क्या है? उन्होंने जवाब दिया 'मेरा नाम आजाद है' पिता का नाम स्वतंत्रता है और घर का पता जेलखाना है। उम्र कम होने के कारण उन्हें जेल की सजा नहीं हुई। 15 कोड़े की सजा दी गईचन्द्रशेखर हर कोडे पर वन्देमातरम् की शंखनाद करते रहे। इस घटना के बाद से चन्द्रशेखर तिवारी, अब चन्द्रशेखर आजाद के नाम से पहचाने जाने लगे। इसी बीच 1922 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया इससे चन्द्रशेखर आजाद बहुत आहत हुएउन्होंने देश को स्वतंत्र करवाने की मन में ठानीएक युवा क्रांतिकारी ने उसे हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन क्रांतिकारी दल के संस्थापक रामप्रसाद बिस्मिल से मिलवाया। आजाद बिस्मिल से बहुत प्रभावित हुए। चन्द्रशेखर की निष्ठा व समर्पण को देखकर बिस्मिल ने आजादको संगठन का सक्रिय सदस्य बना लिया। आजाद संस्था के लिए धन एकत्र करने का कार्य करते थे। 1925 में काकोरी कांड ट्रेन डकैती में बाइसराय ट्रेन को उड़ाने का प्रयास किया। 1926 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सान्डर्स पर गोलीबारी की। 1928 में भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु के साथ मिलकर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा का गठन किया।


चन्द्रशेखर आजाद एक महान क्रांतिकारी थे, उनकी उग्र देश भक्ति और साहस ने उनकी पीढ़ी के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित कियाचन्द्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए भगतसिंह के साथ सलाहकार बनकर एक महान स्वतंत्रता .डी. भारती राव सेनानी बने। भगतसिंह के साथ उन्हें भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।


महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद को अंग्रेजों ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क के आसपास आकर घेरा डाल दिया। किसी घर के भेदी ने ही उनके यहां होने की सूचना दे दी अंग्रेजी पुलिस की फौज ने आनन-फानन में घेरा बंदी डाल दी। पुलिस की उधर से गोलियां चली इधर से चन्द्रशेखर ने जवाब में बहादुरी से गोली दागी परन्तु अकेले उनके हत्थे चढ़ने के डर से स्वाभिमानी चन्द्रशेखर ने स्वयं को ही गोली मार ली। जीते जी उन्होंने यह तय किया था कि वे मरते मर जायेंगे पर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगेंगे।


आजादी का जितना जुनून चंद्रशेखर के दिलो दिमाग में बसता था वह हमारे युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बना, आजादी तो हमने पा ली पर यहां आजादी हमें बहुत महंगी पड़ी। देश को सजाने संवारने विकास के रास्ते में आगे बढ़ाने वाले क्रांतिवीरों को खोकर आजादी का उपहार उनकी दी हुई भेंट है हमें उन नौजवान अमर शहीदों का नाम बढ़ाते हुए आजादी को भ्रष्टाचार की गुलामी से आजाद कर आगे बढ़ाना होगा। हमारे देश में जयचन्दों की कमी नहीं है, हमें युवा भारत को युवा क्रांतिकारियों के सपनों का भारत बनाने का अवसर देना होगा। सत्ता लोलुप सफेदपोश स्वार्थी हाथों से भारतीय लोकतंत्र को आजादी देनी होगी•