अज्ञात शहीद
रामचन्द्र आप्टे आज बहुत प्रसन्न था आज ही उसे पूना के एक डाकघर में पोस्टमैन के रूप में नियुक्ति पत्र मिला थावेतन भी अच्छा था 25 रू महीने। वो प्रसन्न था सारे खों के बाद भी उसे 5 रू महीने बचत की उम्मीद थी। उसने जाने की तैयारी प्रारम्भ की और दो दिन बाद माता पिता का आशीर्वाद लेकर बस अड्डे की ओर चल दिया। बस में बैठा कुछ सोच रहा था कि अचानक एक लड़का उसे एक पर्चा देकर चला गया, पढ़ा तो लिखा था।
जागो जागो देश के नौजवान जागो। 150 वर्ष से अधिक के अंग्रेजी शासन ने हमारे देश को कंगाल और जर्जर बना दिया है। सामाजिक व्यवस्था, सांस्कतिक विरासत और अर्थ व्यवस्था सबका नाश किया जा रहा हैभखे नंगे किसानों से फसल न होने पर भी लगान मांगा जा रहा है. उनका जीवन गलामों जैसा हो गया है. अपने ही खेतों में मजदर बन कर रह गए हैं. जो पैदा होता है अंग्रेज छीन ले जाते हैं. किसानों को दो समय का भोजन भी ठीक से नही मिल पा रहा हैपूरे देश को गुलामों की बस्ती बनाने का षडयंत्र चल रहा है, जरा सा विरोध करते ही जानवरों की तरह पीट कर जेलों में डाला जा रहा है। देश प्रेमियों को न्याय के नाम पर नाटक करने के बाद फांसी पर चढा दिया जाता है। चूंकि हिन्दू इस देश में बहुसंख्यक है इसलिए देश को आजाद कराने की जिम्मेदारी भी सबसे पहले उनकी है।
भारत माता के सपूतों को जेल में यातनाएं दी जा रही हैं, नाखूनों में कीलें ठोकी जा रहीं हैं घुटनों को डंडे मार कर तोड़ा जा रहा है। कब तक, कब तक इनका लहू यों बहता रहेगा। देश के बेटे अपने ही देश में गुनहगार कब तक कहलाएंगें। क्या इन अत्याचारों को सुन कर पढ़ कर तुम्हारा खून नहीं खौलता?
जागो जागो भारत के हिन्दुओं जागो, नौजवानों जागो
-गंगाधर सावरकर
पर्चे को पढ़ने में वो इतना खो गया कि बस कब चल दी उसे पता ही नहीं चला। उसे रह रह कर ख्याल आ रहे थे कि थोड़ी यातनाओं के बाद तो शेर और हाथी जैसे जानवर भी रिंगमास्टर के इशारों पर नाचने लगते हैं, कैसे अद्भुत हैं हमारे क्रान्तिकारी, किस मिट्टी के बने हैं, इतनी यातनाओं के बाद भी मुंह नहीं खोलते, गुलामी स्वीकार नहीं करते, वन्दे मातरम का शंखनाद करते हुए हंसते हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं। काश किसी क्रान्तकारी से भेंट हो जाती तो चरणों की धूल माथे पर लगाकर जीवन धन्य कर लेता। तभी बस अचानक रूक गई , देखा तो पूना आ गया था।
दो दिन बाद वो पूना के रिटायर होने वाले डाकिए से उस क्षेत्र के मकान नम्बरों और क्षेत्र में रहने वाले विशेष लोगों के बारे में जानकारी ले रहा थाघूमते घूमते जब वो एक पुराने मकान के सामने पहुंचा तो पुराने डाकिए ने बताया उस घर पर विशेष नजर रखना
क्यों क्या खास बात है इस घर में?' रामचन्द्र ने पूछा तो डाकिए ने बताया ''ये क्रान्तिकारी सावरकर का घर है, पूरे पत्र सेंसर होकर आते हैं, पांच बार छापा पड़ चुका है मगर गंगाधर आज तक हाथ नहीं आए। सुनते ही रामचन्द्र रोमांचित हो उठा किन्तु दूसरे ही क्षण भावनाओं पर नियंत्रण करके डाकिए से बोला "ठीक है चलो अगला घर देखते हैं। किन्तु डाकिया जैसे ही आगे बढा वो जान बूझकर दो कदम पीछे रह गया, इस घर के द्वार की मिट्टी उठाई और माथे पर लगा ली। तभी डाकिए ने पीछे मुड़कर देखा और पूछा 'क्या हुआ रामचन्द्र' तो कह दिया कुछ नहीं एक पैसे का सिक्का गिर गया था।
एक सप्ताह बाद पुराना डाकिया रिटायर हो गया और पहली बार वो अकेला चिठ्ठीयां बांटने निकला। गढ़े में एक चिठ्ठी गंगाधर सावरकर की भी थी, देखते ही प्रसन्न हो गया. पत्र निकाला और एक कोने में लिख दिया 'नया डाकिया दशर्नाभिलाषी है।' इसके बाद वो पत्र लेकर सीधा उन्हीं के घर पहुंचा। घर खला हुआ था सामने कोई नहीं था। आंगन में जाकर आवाज लगाई तो एक स्त्री बाहर आई और पूछा क्या बात है।'
'जी गंगाधर जी का खत है" और खत देते हुए बोला 'मेरा नाम रामचन्द्र आप्टे है, इस क्षेत्र का नया डाकिया हैं. आप कौन हैं बाई जी?' 'मैं गंगाधर की माँ हूं"
'मैं गंगाधर की माँ हूं" ये सुनते ही रामचन्द्र आगे बढ़ा और चरणों की धुल मिल जाती तो जीवन सफल हो जाता।' ये कहकर वो बाहर आया और दूसरे घर की ओर बढ़ गयासौभाग्य से दस दिन बाद ही उसकी ये इच्छा पूरी हो गई। उस शाम को वो चिठ्ठीयां बांट कर जब घर की ओर जा रहा था तो एक सुनसान गली में मडते ही मंह ढके हुए एक व्यक्ति सामने आया और पूछा 'क्या बात है डाकिए गंगाधर जी से क्यों मिलना चाहते हो।'
रामचन्द्र पहले तो चौंका फिर सम्भल कर बोला' उनके चरणों की धूल लेनी है। 'ठीक रात 11 बजे काली मंदिर पर आ जाना, एक बाबा आएंगे दर्शन कर लेना... लेकिन कोई होशियारी नहीं, पुलिस को सूचना दी तो ......' ये कहकर वो आदमी दूसरी गली में गुम हो गया।
ठीक समय पर वो मन्दिर पहुंच गया मगर बारह बजे तक कोई नहीं आया तो निराश होकर वापस लौटने लगा।वो अभी थोड़ी दूर ही गया था कि अंधेरे से आवाज आई 'वापस मत जाओ रामचन्द्र मैं आ गया हं' अंधेरे में उसे एक आकति दिखी चेहरा तो ठीक से नहीं दिखा फिर भी उसने आगे बढ़कर चरण स्पर्श किया और बोला 'आज मैं धन्य हो गया,मेरे लिए भी यदि कोई सेवा हो तो बताइए, अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहता हूं' हो' एक रौबीली आवाज गूंजी।
'जी आपके पत्र सेंसर होकर आते हैं आप किसी जाली नाम से जाली पते पर पत्र मंगवाइए मैं आप तक पहुंचा दूंगा।' 'ठीक है, विचार अच्छा है, हम उपयोग करेगें, अब चलना चाहिए, वन्दे मातरम.
लगभग एक सप्ताह बाद रामचन्द्र जब घर पहुंचा तो एक पर्ची मिली जिसमें एक पता लिखा था और नीचे लिखा था '। इस पते को याद करके पर्ची तुरन्त फाड़ दो।' रामचन्द्र ने वैसा ही किया। दूसरे दिन से ही रामचन्द्र का नियम हो गया कि सुबह सबसे पहले डाकघर पहुंचना उस पते की डाक अपने कब्जे में लेना और बांटने के लिए निकल जाना। कभी स्वास्थ ठीक नहीं हआ तो भी वो सबसे पहले पहंच कर डाक देखता था उसके बाद ही अवकाश लेकर घर आता था। 5 महीने तक सब ऐसे ही चलता रहातभी एक व्यक्ति ने आकर सूचना दी कि गंगाधर जी उससे मिलना चाहते हैं ठीक उसी स्थान पर लेकिन प्रातः 5 बजे।
इस बार रामचन्द्र को प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी, वो और गंगाधर जी लगभग एक साथ पहुंचे। मिलते ही गंगाधर जी ने उसकी पीठ थपथपाई और बोले 'बहुत अच्छा काम कर रहे हो रामचन्द्र, देश भर में यदि 100 नौजवान इस तरह हमारे साथ आ जाएं तो हम रातों रात अंग्रेजों को भगा दें। स्वतंत्रता हमें अवश्य मिलेगी, केवल कुछ समय की बात है। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा अगला जन्म स्वतंत्र भारत में होगा।' ये कहते हुए उन्होंने एक पर्ची दी और बोले" नया पता है इस पर कुछ पार्सल आएंगे, सावधानी से हमारे पास पहुंचा देना, बहुत जरूरी माल है, चलते हैं-वन्दे मातरम्।'
अगले 6 महीनों में 12 पार्सल आए जिसमें एक दो भारी भी थे। एक बार एक पार्सल थोड़ा खुल गया था, उसमें झांकने पर रामचन्द ने देखा एक मोटी पुस्तक थी जिसका नाम था 'यूरोप का इतिहास!' रामचन्द्र ने निर्देश के अनुसार मंदिर के पास एक निश्चित स्थान पर पार्सल रख दिया और चला आया।तभी अचानक एक अप्रत्याशित घटना हो गई। रामचन्द्र डाक बांट कर वापस आ रहा था कि रास्ते में उसे एक पर्ची दी गई जिस पर लिखा था।' सरकार ने एक पार्सल खोल लिया है, भेद खुल गया है, तुम्हारी गिरफ्तारी किसी भी क्षण हो सकती है जल्द भाग जाओं, यदि पकड़े जाओ तो बहाना बनाकर बचने की कोशिश करना देश को तुम्हारी आवश्यकता है।' पढ़ते ही वो घर की ओर भागा, सामान उठाया और बस पकड़ कर गाँव जाने के लिए में ही पुलिस ने पकड़ लिया। बस में ही उसने हुंकारा लगाया' वन्दे मातरम् तो पूरी बस वन्दे मातरम् से गूंज उठीपुलिस ने उसे बताया कि पुस्तकों में पन्नों के बीच खांचा काटकर रिवाल्वर छुपा कर भेजे जाते थे तो उसे पूरा किस्सा समझ में आया, पहले तो उसने अन्जान बनने की कोशिश की किन्तु यातनाओं के बाद उसने बताया।' मेरा क्रान्तिकारियों से कोई सम्बन्ध नहीं है, मैं पैसे के लालच में ऐसा करता था, मुझे एक पार्सल पहुंचाने का दो रूपया मिलता था। जिस व्यक्ति ने सबसे पहले सम्पर्क किया वो अंधेरे में था इसलिए शक्ल नहीं देख सका. पैसे मझे दूसरे दिन वहीं रखे मिलते थे जहाँ मैं पुस्तक रख कर आता था। पुलिस ने पछा कि तुम भाग क्यों रहे थे तो उसने कहा कि' घर में एक पर्ची मिली थी जिसे पढकर मैं घबरा गया था और मैं भाग खड़ा हुआ
मुकदमा चला तो अदालत ने उसकी बात का विश्वास नहीं किया और सरकारी पद के दुरूपयोग और ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध षड़यंत्र के आरोप में फांसी की सजा सुनाई। उससे अंतिम इच्छा पछी गई तो उसने अपनी मां से मिलने की इच्छा प्रकट की'मेरा आशीर्वाद है जल्दी जाओ बेटा अधरा काम तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है, पर्नजन्म तेरी प्रतीक्षा कर रहा है स्वतंत्र भारत तेरी प्रतीक्षा कर रहा है, वन्दे मातरमरामचन्द्र ने भी जोर से वन्दे मातरम का घोष किया और फांसी के फंदे की ओर बढ़ गया i