बाल कहानी
नसीहत
माँ ने बहुत समझाया कि मुर्गियां भूखा है,कल तक दाना नहीं मिलेगा तो मर जायेंगी। माँ के बार-बार कहने पर भोला ने कहा- ठीक है माँ मैं जाता हूँ लेकिन मैं दो चक्कर नहीं लगाऊंगा। मुर्गियों को खेत में छोड़ता हुआ तालाब में फूल गिरा आऊंगा।'
रामपुर गाँव में एक छोटे से मकान में भोला अपनी विधवा माँ के साथ रहता थाभोला की माँ दिन भर खेत में मेहनत करती और गुजारे लायक धान उगा पाती। जब खेती-किसानी पर विपत्ति आती, यानी सूखा पड़ता तो वह परेशान होकर सोचती कि अकेले खेती के भरोसे वह अपना और अपने बेटे भोला का पेट कैसे भर पायेगीबहुत सोचकर उसने कुछ मुर्गियां पाल लीं, जिससे अंडे बेचकर वह सूखे के दिनों में भी गुजर-बसर कर सके।
भोला निहायत आलसी लड़का था। वह दिन-भर घर में चादर तानकर सोता और शाम को अपने दोस्तों के साथ खेल-कूदकर रात होने पर घर आताआते ही वह माँ को भूख-भूख की रट लगाकर तंग करता। आलस ने उसकी बुद्धि भी हर ली थी। उसे पढ़ना-लिखना अच्छा नहीं लगता। माँ ने कई बार उसे गाँव की पाठशाला में भेजा, लेकिन वह हर बार पाठशाला से भागकर घर आकर सो जाता। माँ तो दिन में खेत में काम करती थी, इसलिए भोला आजाद था। यह इसी तरह अपना समय बर्बाद करता। माँ ने दिन में उसे मुर्गियों की देखभाल और सुरक्षा का जिम्मा सौंपा था, मगर उसे सोने से ही फुरसत नहीं मिलती थी। ऐसे में कई बार मुर्गियों को बिल्ली पकड़कर ले जाती। शाम को माँ आकर जब देखती कि मुर्गियों की संख्या कम हो गई, तो वह भोला से पूछती। भोला बड़ी लापरवाही से कहता - मुझे क्या पता? मैं तो सो रहा था।
भोला की इस आलसी प्रवृत्ति से माँ बड़ी चिन्तित रहती। वह सोचती - 'मेरे बाद भोला की देखभाल कौन करेगा। क्योंकि वह न पढ़ना-लिखना जानता है, न मेहनत ही कर सकता। ऐसे निखटू को कौन खिलायेगा। लेकिन भोला को न माँ की चिन्ता से कुछ लेनादेना था, न उसकी नसीहतों की ही कोई कीमत व समझता था।
एक दिन माँ की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। वह खेत पर नहीं गईउसने भोला से कहा, 'बेटा, जा ये पूजा के फूल तालाब में विसर्जित कर देना और लौटकर मुर्गियों को ले जाकर जरा खेत में छोड़ आना। बेचारी वहीं अपना पेट भर लेंगी।
माँ की बात सुनकर भोला बोला - 'माँ मेरे पैर बहुत दु:खते हैं, मैं कल चला जाऊंगा।'
___ माँ ने बहुत समझाया कि मुर्गियां भूखी हैं, कल तक दाना नहीं मिलेगा तो बेचारी मर जायेंगी। माँ के बार-बार कहने पर भोला ने कहा – ठीक है माँ मैं जाता हूँ लेकिन मैं दो चक्कर नहीं लगाऊंगा। मुर्गियों को खेत में छोड़ता हुआ तालाब में फूल गिरा आऊंगा।'
माँ ने सोचा, चलो आज हाथ-पैर हिलाने को भोला तैयार तो हुआ। भोला ने एक टोकरी में मुर्गियां भर लीं और एक थैली में पूजा के फूल डालकर चल पड़ाकाम करने की बिल्कुल आदत नहीं होने के कारण भोला को अच्छा नहीं लग रहा था। ऊपर से नींद हावी हो रही थीचलते-चलते वह खेत के सामने आ पहुंचा। उसने कुछ राहत की सांस ली। नींद के वश में तो था ही, मुर्गियों की जगह फूलों को खेत में डाल दिया और फिर बढ़ चला तालाब की ओर।
____ तालाब तक पहुंचते-पहुंचते तो भोला बेहाल हो चला था। वह जैसे नींद में ही चलता हुआ तालाब के किनारे तक आ गया और अरे यह क्या? भोला मुर्गियों की टोकनी समेत धड़ाम से तालाब में जा गिरा। कुछ दूरी पर नहा रहे एक किसान ने जब देखा कि कोई डूब रहा है तो वह फुर्ती से तैरता हुआ आया और उसने भोला को पानी से बाहर निकाल लिया। मुर्गियां तो टोकरी सहित डूब चुकी थीं। भोला को होश आया। वह मन ही मन पछता रहा था। ओफ! यह मुझसे क्या हो गया। अब मैं माँ को क्या जवाब दूंगा।' किसान
किसान ने भोला को उसके घर पहुंचा दिया और उसके डूबने का हाल भोला की माँ से कह सुनाया। माँ के पूछने पर भोला ने शर्म से गर्दन झुकाकर कहा – 'माँ, मुझे माफ कर दो। मैं बहुत खराब लड़का हूँ। आलस में नींद के कारण मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था। मैंने खेत में मुर्गियों की जगह फूल डाल दिये और तालाब में जब मुर्गियों की टोकरी लेकर पहुंचा तो मुझे धरती पानी का अन्तर ही नहीं समझ में आया। मैं मुर्गियों की टोकरी हाथ में लिये सीधे पानी में कूद पड़ा। आज मेरी वजह से सभी मुर्गियां डूब गई माँ । मुझे माफ कर दो माँ। अब मैं कभी आलस नहीं करूंगा। हर काम करूंगा। खेत में भी तुम्हारा हाथ बटाऊंगा। मैं सच कहता हूँ।कल से मैं पाठशाला भी जाऊंगा।
भोला में आये इस परिवर्तन से माँ बहुत खुश हुई और से गले लगाते हुए बोली – बेटा आलस एक ऐसा रोग है, जो को बहुत गहरे गड्ढे में गिरा देता है। भगवान का धन्यवाद, जो तुम गिरकर भी बच गये और तुम्हें सुबुद्धि आ गई। मुर्गियों का नुकसान जरूर हुआ लेकिन आज तुम्हें नसीहत मिली है, वह उम्र भर तुम्हारा फायदा करेगी'I