आरक्षण महाराज का वरदान

व्यंग्य 


आरक्षण महाराज का वरदान 


'हे मुस्टंडे महाराज आप कौन हैं?' ___हा हा हा ...। तुम मुझे नहीं जानते। हा हा हा .... । भारत देश में रहते हुए भी मुझे नहीं जानते । हा हा हा...। _ 'महाराज सबसे पहले तो एक बात बताएँ। आप इतना हँस क्यों रहे हैं? मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि या तो आप रावण के वंश से हैं या फिर आप हँसाने वाली गैस नाइट्रस आक्साइड के प्रभाव में हैं? वैसे आप ही बताएँ कि आखिर ये माजरा क्या है?'


_ 'हा हा हा .... । देखो न तो मैं रावण के खानदान से हूँ और न ही मुझ पर किसी ऐसी गैस-वैस का असर है, जिसका नाम याद करने में ही पसीने छूटे। मैं तो भारतीय संविधान द्वारा दी गई सुविधाओं को पाकर मस्त रहता हूँ और सदैव हँसता रहता हूँ। 'वैसे आप हैं कौन?' 'पहले तुम बताओ कि तुम कौन हो?'


'जी मैं सवर्ण समाज हूँ। अब आप अपना परिचय देने की कृपा करें।' 'हा हा हा। मैं तुम्हारी नैया डुबाने वाला आरक्षण हूँ।' _ 'महाराज आपका जन्म कब, क्यों और कैसे हुआ? कृपया इस विषय में ज्ञान दीजए।'


___ 'वैसे तो ज्ञान और मेरा नाता कोसों दूर का है, फिर भी मैं अपनी जन्म लेने की कहानी तुम्हें बताता हूँ।' 'आपकी इस दयालुता के लिए आभार।'


_ 'तो सुनो मैं बाबा अंबेडकर की जिद व महात्मा गांधी के आशीर्वाद से उत्पन्न जीव हूं। पूना समझौते का सहारा लेकर दिनांक 24 सिंतबर, 1932 ईस्वी को मेरा जन्म हुआ।


'किन्तु महाराज, जहाँ तक मैंने सुना है, आपका जन्म निश्चित समय के लिए ही हुआ था।' 'सही सुना है। मेरा जन्म दस वर्ष के लिए ही हुआ था। दस वर्ष की अवधि पूर्ण करते ही मुझे इच्छामृत्यु का वरण कर लेना था।' ___ 'फिर आपने ऐसा किया क्यों नहीं?'


___ 'मैं क्या करता। मुझे जीने को प्रोत्साहित किया गया।' 'किसने आपको जीने को प्रोत्साहित किया?' _ 'उन लोगों ने, जो किसी-न- किसी प्रकार सत्ता से चिपके रहना चाहते थे। उन्होंने हर बार दस वर्ष मुझे जीवनदान दिया। अब मुझे विश्वास हो गया कि मेरी मृत्यु कभी भी नहीं होगी। मैं अजर-अमर हूँ।हा हा हा ...।'


'शायद आप ठीक कह रहे हैंजैसे-जैसे आपको अभयदान मिलता जा रहा है, मेरी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।'


'तुमने सदियों तक मजे भी तो मारे हैं और आरक्षित वर्ग का शोषण किया लिए है।'


_ 'यदि हमने आरक्षित वर्ग का शोषण किया होता तो वर्तमान में उनकी जनसंख्या इतनी अधिक कैसे होती?' 'हाँ, यह तो सोचने वाली बात है।' 'चलिए इस बात से संतोष हुआ कि आप सोचते भी हैं।' क्या मैंने सोचकर कोई पाप किया? चलो मैं फिर से अपनी न सोचने वाली पूर्व स्थिति में आ जाता हूँ।'


'नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मुझे आपके सोचने पर कोई आपत्ति नहीं है। आप सोचिए और मैं तो कहता हूँ कि जी भरके सोचिए। सोचिए कि क्या वास्तव में जिन्हें आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए था, उन्हें यह मिल पाया? आप सोचिए कि जो आरक्षण लेकर सक्षम हो गए क्या उन्होंने आपका दुरुपयोग नहीं किया और वंचितों का अधिकार नहीं मारा? आप यह भी सोचिए कि आरक्षण से एक ऐसा वर्ग पनपा है, जो एक साजिश के तहत इसका लाभ उन लोगों को लेने से रोक रहा है, जिन्हें इसकी सख्त जरूरत है?' 'मुझे यह सब मालूम है।'


'मुझे यह सब मालूम है।' फिर भी आप कुछ नहीं करतेकहीं इसमें आपकी मिलीभगत तो नहीं है?'


'अब तुमसे क्या छुपाना। मैं स्वयं इस अन्याय से व्यथित हूँ और इतना अधिक व्यथित हूँ कि अकाल मृत्यु चाहता हूँ, किन्तु मृत्यु शायद मेरे भाग्य में नहीं है।'


'अरे आप तो हँसने के साथ-साथ रोते भी हैं।' ___'हाँ लोगों से अपना दु:ख छिपाने के लिए मैं सदैव हँसता रहता हूँ। तुम सोचते होंगे कि आरक्षण-व्यवस्था से मैं बहुत प्रसन्न हूँ, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। मुझे इसलिए उत्पन्न किया गया था ताकि समाज में सभी समान बन सकें, किंतु जबसे मेरा जन्म हुआ है, तब से समाज में द्वेषभाव में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। खैर, मैं तुमसे अत्यंत प्रभावित हुआ। तुम कोई एक वर माँगो मैं उसे पूर्ण करने का हरसंभव प्रयास करूंगाहाँ मेरी मृत्यु मत माँगना, क्योंकि यह मेरे वश में नहीं है।'


'आपने भारत के हर वर्ग को अपनी शरण में ले लिया है। आपसे निवेदन है कि मुझे भी अपनी छत्रछाया में ले लें।' _ 'तथास्तु ! आज से एस.बी.सी. के रूप में मैंने तुम्हें आरक्षण अर्थात स्वयं में सम्मिलित किया।'


'एस.बी.सी. से अभिप्राय?' 'एस.बी.सी. अर्थात स्पेशल बैकवर्ड क्लास बोले तो विशेष पिछड़ा वर्ग। आज से संपूर्ण भारतवासी मेरी शरण में आ गए। अब किसी में कोई भेद नहीं रहेगा और न ही आपसी संघर्ष होगाअर्थात् न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी। हा हा हा ....।'


'धन्यवाद, आरक्षण महाराजआप वास्तव में महान हैं।'