संपादकीय...
की शीत लहरों ने भले ही तन को जकड़ रखा है, पर मन तो भाग रहा है. वह तो ऋतओं के किसी बंधन को नहीं मानता है उसे तो उड-उड कर हर जगह की खबर रखनी है। आखिर गीता के 'स्थित प्रज्ञ' का सार भला यह मन कब समझ पाएगा। उसका यूं यहां वहां जाना उसके विकास की गति को दर्शाता है। लगता है उसका भटकना ही उसकी प्राप्ति का मार्ग है। सीपी समद्र के गहरे जल में रहकर भी प्यासी है, उसे तो स्वाती नक्षत्र का जल ही तृप्त करता है। मन के भटकाव की प्यास उस परमात्मा के प्रेम की एक बूंद से ही शांत होता है। मन की यह चंचलता आखिर अपने मन्तव्य को पा ही लेती है। अनेकानेक विषयों, समस्याओं, उलझनों के मायाजाल में पड़ा हुआ मन अंततोगत्वा विकास चाहता हैवास्तव में विकास ही समाज की इकाई परिवार यदि है, तो एक व्यक्ति ही परिवार की इकाई है और क्या आप जानते हैं कि एक व्यक्ति के जागृत होने मात्र से कितना प्रकाश फैलता है, तो फिर एक भारतवासी के जागने से समूचा भारत प्रकाशित हो सकता है और अगर, 125 करोड़ का यह भारत जागे तो क्या होगा। विश्वाकाश में भारत जगमगाएगा, विश्व गुरू बन विश्व को मार्गदर्शित कर सृष्टि चक्र का धर्म निभाएगा। कितनी सुखद है, यह कल्पना परन्तु यह मात्र दिवा स्वप्न नहीं एक हकीकत भी है।
अंतसमणि पत्रिका के गत 20 अंकों के सम्पादकीय में विविध विषयों को लेकर लिखते हुए, आज मुझे यह अनुभूति हुई है, कि जब हम एक नई सोच, नई पहल, नई चेतना. नया विश्वास. एक नवोदित प्रयास के सकारात्मक लक्ष्य तक पहंच गए हैं तो क्यों? न हम उच्चतम विकास की बात करें। हम सब एक भव्यतम, दिव्यतम, श्रेष्ठतम, सुन्दरतम, उत्कृष्टतम नवोदित समाज के निर्माण के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं, तो हमें अपने प्रयासों को सशक्त पाखी देकर उन्मुक्त आकाश में उड़ना होगा। हमें सामाजिक जागरूकता अभियान छेड़कर जन-जन को जगाना होगा, सदियों से बाधित विकास की गति को हर हृदय में स्पंदित करना होगा। तो क्या? हम सब विकास पथ के पथिक नहीं बन सकते।
समाज की इकाई परिवार यदि है, तो एक व्यक्ति ही परिवार की इकाई है और क्या आप जानते हैं कि एक व्यक्ति के जागृत होने मात्र से कितना प्रकाश फैलता है, तो फिर एक भारतवासी के जागने से समूचा भारत प्रकाशित हो सकता है और अगर, 125 करोड़ का यह भारत जागे तो क्या होगा। विश्वाकाश में भारत जगमगाएगा, विश्व गुरू बन विश्व को मार्गदर्शित कर सृष्टि चक्र का धर्म निभाएगा। कितनी सुखद है, यह कल्पना परन्तु यह मात्र दिवा स्वप्न नहीं एक हकीकत भी है।
एक नन्हा सा बीज माटी में समाकर जब नन्हें कोमल रूप में उद्भिज होता है, तो उसके अंतस में पूर्ण विकसित होकर खुले आकाश में उन्मुक्त होकर उसे छूने का भाव होता है। वह तो एक बीज है, जो अपना सर्वस्व देने, विशाल वृक्ष बनता है यह हमारे समक्ष एक उदाहरण है। ईश्वर ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना, मानव को सर्वश्रेष्ठ बुद्धि देकर उसे सब कुछ दिया है, तो विकास की अनंत संभावनाओं में उसका खरा उतरना कोई मुश्किल काम नहीं है। शरीर की हर नस नाड़ी को शक्ति पहुंचाने के लिए जिस प्रकार तन में रक्त प्रवाहित होता है ठीक उसी तरह सामाजिक जागरूकता की पहल करते हुए विकास के प्रति उत्साह, उमंग जगाने के लिए प्रचण्ड पुरुषार्थ करना होगा।
हमें सद्भावना अंतस मानव श्रृंखला का निर्माण करना होगा। प्रत्येक पाठक जो अंतसमणि परिवार का सदस्य है उसे विकास के पथ का पथिक बनाकर कम से कम पांच आत्मीय श्रेष्ठाचारी स्वजनों को श्रृंखला में जोड़कर विकास के प्रवाह को गति देना होगा। जब तक शुद्ध रक्त शरीर में प्रवाहित नहीं होगा तब तक शरीर पूर्ण स्वस्थ नहीं होगा। ठीक ऐसे ही जब तक विकास की सकारात्मक सोच जन-जन में प्रवाहित नहीं होगा तब तक सामाजिक जागरूकता संभव नहीं है। इसलिए स्वयं जागकर सबको जगाना होगा। हीरे को कहां पता है कि वह हीरा है।
हमारे सभी आत्मीय श्रेष्ठाचारी स्वजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। आप सभी से यह अपेक्षा है कि नववर्ष में हम सब मिलकर विकास की नई ऊँचाईयों की ओर अपनी यात्रा आरंभ करें। इसमें आप सबके सहयोगी होने की अत्यन्त आवश्यकता है। अच्छे, सद्विचार जहां एक ओर हमें आत्म विश्वास से भरते हैं, तो दूसरी ओर हमें अपने जीवन को उपयोगी व उद्देश्यपूर्ण बनाने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए क्यों न हम सब मिलकर 'सामाजिक जागरूकता' का दायित्व निभाते हुए विकास के ध्वज के नीचे स्वयं को एक जुट करें। यदि आप राजी है तो फिर और सब भी राजी होंगे i
स्वच्छ ता. स्वास्थ्य, चरित्र. व्यक्तित्व, साहस, पराक्रम, कर्मनिष्ठा, सहयोग, सद्भावना, सत्य, अहिंसा, प्रेम जैसे नैतिक, मानवीय, जीवनीय मूल्यों की नींव मजबूत बनाने के लिए हम सबका इनके प्रति निष्ठा का दायित्व बनता है। मूल्यों के अभाव में मानव जीवन निर्जीव है। उसकी समग्र चेतना का सार ये ही मूल्य हैं, यदि मूल्य नहीं तो जीवन अकारथ चला जाएगा। एक मूल्य निष्ठ समाज के निर्माण में अपना सहयोग देकर क्यों न हम सब विकास पथ के पथिक बनें। आइये संकल्प लें कि इस नववर्ष को सामाजिक जागरूकता का मिशन बनाएंगे और स्वयं जागकर औरों को भी जगायेंगे।
अंतसमणि जनवरी-मार्च 2018