अंतसमणि पत्रिका की परिकल्पना


अंतसमणि पत्रिका की परिकल्पना अंतसमणि एक अतिविशिष्ट एवं संदर परिकल्पना है जिसमें विकास को, समृद्धि को, परिवर्तन को, सकारात्मक, रचनात्मकता और सम्पूर्ण भारतीय परिवेश को विस्तार रूप में रखा है। निश्चित रूप से यह परख, यह सोच, मध्यप्रदेश में ही नहीं वरन् पूरे देश में हिन्दी भाषाके गौरव को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगाकिसी भी राष्ट्र के तीन मुख्य आधार होते हैं। जन, संस्कृति और भूमि।दरअसल एक निश्चित भू भाग पर रहने वाले जनसमुदायकी भाषा शैली औरआचारव्यवहारही उसे एक राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। वास्तविकता यही है कि हमारे समाज की कूल इकाई परिवार है। जिसकी उन्नति, प्रगति समृद्धि, भाषा, आचार, व्यवहारकी उत्कृष्टता पर ही देश, समाज राष्ट्रका विकास अवलम्बित है।


समाज की उन्नति में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिसमें सबका हित समाया है वही साहित्य है। सूर, तुलसी, कबीर जैसे साहित्य के सशक्त हस्ताक्षरों ने अपनी सकारात्मक कलम की ऊर्जा से युग परिवर्तन का ही कार्य किया।समाज के पतन की ओर अग्रसरकदमों को उत्थान की ओर मोड़करयुगप्रवर्तक महान संत कवियों ने समाजव साहित्य के अटूट संबंध को मजबूत किया।गीत, कहानी, प्रसंग, नाटक, प्रहसन ये सब मनुष्य के समूचे जीवन को प्रभावित कर उन्हें बदलने में सक्षम हैं अतः ससाहित्य सभ्य समाज की कसौटी है। यहां हम यह कहना चाहते हैं कि अंतसमणि त्रैमासिक पत्रिका का लक्ष्य भी समाज की उन्नति समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है। जब कोई परिवार नियमित रूप से जीवन के विविध आयामों के संबंध में सकारात्मक नवोदित विचारों को बढ़ाता है तो उसमें स्वावलम्बन, आत्माभिमान, साहस, पराक्रम के भाव उपजते हैं, वह आत्मनिर्भरबनता है, उसे प्रेरणा मिलती है।


भारत की संस्कृति, सभ्यता व अध्यात्मिकता का विस्तारसर्वोत्कृष्ट है ऐसे में आज पाश्चात्य संस्कृति ने चाहे जितना हम पर हावी होने का प्रयास किया है परंतु भारतीयता की प्रखरता ने उसे मात दे दी है। जन जन की चेतना को जगाने उन्हें सबल बनाने और विश्व संस्कृति के सम्मान और प्रतिष्ठा को बनाए रखने की समझ प्रदान करने के लिये अंतसमणि स्वयं को भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार प्रस्तुत करेगा कि सारे विवाद, भ्रांतियां, संशय, हृदय हीनता और आक्षेप की भावनाएं स्वतः ही नष्ट होंगी। अस्वस्थ्य, अकर्मण्य, संस्कारविहीन जनमानस किसी भी समाज की पहचान नहीं बन सकते। अतः हमें पूर्ण स्वस्थ, कर्मशील, चरित्रवान, संस्कारवान सबल, सक्षम, समर्थ, साहसी, पराक्रमी, जन मानस का निर्माण करना होगा । एक अच्छी व बड़ी सोच असंभव कार्य को भी संभव कर देती है। अंतसमणि भी एक सुविचार है जो अपनी प्राण ऊर्जा से एक नवोदित, सुसंस्कारवान, चरित्रवान, सुदृढ़ श्रेष्ठाचारी समाजको प्रत्यक्ष अनुभव करना चाहती है।